✍🏽 परवेज़ अख़्तर/एडिटर इन चीफ
सीवान: भागमभाग भरी जिंदगी और बढ़ते शहरीकरण के कारण ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए सदर अस्पताल परिसर स्थित ओपीडी में सोमवार को विश्व श्रवण दिवस मनाया गया। इस अवसर पर सिविल सर्जन डॉ. श्रीनिवास प्रसाद ने कहा कि मशीनों, वाहनों और डीजे के तेज शोर के कारण बहरेपन की समस्या तेजी से बढ़ रही है। लगातार तेज आवाज में रहने से श्रवण क्षमता प्रभावित होती है, जिससे भविष्य में सुनने की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
ध्वनि प्रदूषण से बढ़ रहा बहरेपन का खतरा
इस दौरान ओपीडी में आने वाले मरीजों को बहरेपन के लक्षणों और उसकी रोकथाम की जानकारी दी गई। इस वर्ष विश्व श्रवण दिवस का विषय था – “मानसिकता में बदलाव: कान और श्रवण देखभाल को सभी के लिए वास्तविकता बनाने के लिए खुद को सशक्त बनाएं”।
प्रभारी जिला गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ. ओम प्रकाश लाल ने बताया कि तीन मार्च को विश्व श्रवण दिवस का आयोजन किया जाता है, ताकि लोगों को श्रवण सुरक्षा और ध्वनि प्रदूषण के खतरों के प्रति जागरूक किया जा सके। उन्होंने कहा कि लोगों में चिड़चिड़ापन और तनाव बढ़ने का एक बड़ा कारण अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण भी है।
गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर असर
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सिसवन की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. रूपाली रस्तोगी ने बताया कि तेज आवाज में लंबे समय तक रहने से गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- गर्भस्थ शिशु में कोर्टिसोल (स्ट्रेस हार्मोन) का स्तर बढ़ जाता है, जिससे बच्चा जन्म के बाद चिड़चिड़ा हो सकता है।
- तेज आवाज में गाने सुनने से बर्थ डिफेक्ट का खतरा बढ़ जाता है और भ्रूण का प्राकृतिक विकास प्रभावित हो सकता है।
- गर्भवती महिलाओं को तनाव और हाइपरटेंशन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
सामाजिक संगठनों की भी जिम्मेदारी
इस अवसर पर डीपीएम विशाल कुमार, एफएलसी इमामुल होदा, सिफार के डीपीसी धर्मेंद्र रस्तोगी, डाटा ऑपरेटर मनीष कुमार सहित अन्य लोग उपस्थित रहे। विशेषज्ञों ने सामाजिक संगठनों, माता-पिता, शिक्षकों और डॉक्टरों से अपील की कि वे युवाओं को श्रवण सुरक्षा के प्रति जागरूक करें, ताकि आने वाली पीढ़ी को इस समस्या से बचाया जा सके।
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