- सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक दर्जा बहाल किया।
- 1967 के फैसले को पलटते हुए, सात सदस्यीय पीठ ने 4:3 के बहुमत से निर्णय सुनाया।
- एएमयू में मुस्लिम छात्रों के लिए 50% सीटें आरक्षित रहेंगी।
- एएमयू के छात्रों और शिक्षकों ने फैसले का स्वागत किया, इसे ऐतिहासिक बताया।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के एतिहासिक फैसले ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया। सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 4:3 के बहुमत से यह निर्णय सुनाया, जिसमें 1967 के एस अजीज बाशा बनाम भारत सरकार के उस फैसले को पलट दिया गया, जिसमें एएमयू को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था। अब इस फैसले के तहत एएमयू में 50% सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित रहेंगी, जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

एएमयू में इस फैसले के बाद जश्न का माहौल है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह अल्पसंख्यकों के शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करता है। ओवैसी के अनुसार, “यह फैसला मुसलमानों के लिए एक विशेष दिन के रूप में दर्ज होगा और यह देश के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा में एक अहम भूमिका निभाएगा।”
संविधान विशेषज्ञ और एएमयू के पूर्व रजिस्ट्रार प्रो. फैजान मुस्तफा ने इस फैसले को न केवल एएमयू बल्कि अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए भी महत्वपूर्ण बताया। एएमयू के प्रोफेसर मोहम्मद आसिम सिद्दीकी ने इसे संस्थान की कानूनी लड़ाई का सुखद परिणाम करार देते हुए कहा कि यह फैसला संस्थान के भविष्य को संवारने में सहायक सिद्ध होगा।
ऑल मदरसा युवा शिक्षक संघ बिहार के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना इमरान ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे इतिहास में “स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाने वाला फैसला” बताया। उन्होंने कहा कि इस निर्णय से अल्पसंख्यक समुदाय को अपनी शिक्षा और पहचान बनाए रखने का अवसर मिलेगा, जो एक सकारात्मक दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अब देशभर के अन्य अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर भी असर डालेगा, जिससे उनमें आरक्षण और अन्य लाभों के संदर्भ में एक नई दिशा का निर्धारण हो सकेगा।