समय सीवान

✍परवेज़ अख़्तर/एडिटर इन चीफ

लोक संगीत की दुनिया में अपनी अनोखी छाप छोड़ने वाली शारदा सिन्हा, जिन्हें ‘बिहार कोकिला’ के नाम से भी जाना जाता था, का मंगलवार को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। 72 वर्ष की उम्र में मल्टीपल मायलोमा से लड़ते हुए उन्होंने अंतिम सांस ली। परिवार में उनके बेटे अंशुमान और बेटी वंदना हैं, जो इस विरासत को संभाले हुए हैं।

शारदा सिन्हा का नाम छठ, विवाह, और अन्य पारंपरिक उत्सवों के गानों में विशेष महत्व रखता था। मैथिली, भोजपुरी, मगही, संस्कृत और हिंदी में गाए उनके गीत न केवल समारोहों को जीवंत करते थे, बल्कि फ़िल्मी जगत में भी ‘मैंने प्यार किया’ और ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ जैसी फिल्मों में उनकी आवाज़ ने गहरा प्रभाव छोड़ा। उनकी आवाज़ ने हर त्योहार और अनुष्ठान में एक नई जान फूंकी थी।

हाल ही में लिवर से संबंधित समस्याओं के चलते उन्हें दिल्ली के ILBS अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ से उन्हें एम्स स्थानांतरित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली, जो उनकी लोकप्रियता और योगदान को दर्शाता है।

शारदा सिन्हा को बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका विंध्यवासिनी देवी की परंपरा को आगे बढ़ाने वाली एक सशक्त आवाज़ माना जाता है। 1971 में लखनऊ में HMV द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में उन्होंने अपनी गायकी का परिचय दिया था। बेगम अख्तर ने उनकी प्रतिभा को सराहा और कहा था कि निरंतर रियाज़ से वे एक दिन बहुत आगे जाएंगी। उस भविष्यवाणी को उन्होंने सच कर दिखाया, 1500 से अधिक गाने गाए, जिनमें विद्यापति, महेन्द्र मिसिर और स्नेहलता जैसे कवियों के गीत शामिल थे।

छठ और विवाह गीतों से मिली लोकप्रियता के बावजूद, उनके विद्यापति गीतों की शास्त्रीयता ने भी संगीत प्रेमियों को प्रभावित किया। उनकी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पंडित रामचंद्र झा, पंचगचिया घराना के रघु झा, और ग्वालियर घराना के सिताराम हरि दांडेकर से हुई थी, जबकि ठुमरी-दादरा उन्होंने किराना घराना की पन्ना देवी से सीखी थी।

अपनी पांच दशक लंबी संगीत यात्रा में उन्होंने SP से SEP, LP से कैसेट्स, और MP3 से यूट्यूब तक का सफर तय किया। यहाँ तक कि डिजिटल दौर में इंस्टाग्राम पर रील्स के माध्यम से युवा पीढ़ी से भी जुड़ी रहीं।

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version